लौट के बुद्धू ब्लॉग्गिंग पर आए
हमारे होस्टल के भइया बोले आजकल ऑरकुट का बड़ा जोर है।काफी दिनों से हम ओर्कुटिया रहे है.क्यो नया तुम भी जुड़ जाओ.दोस्तों ने भी हाँ मैं हाँ मिलते हुए काहा जुड़ जाओ.जो मजा ऑरकुट मैं है वो ब्लॉग्गिंग मैं कहाँ!! हमने सोचा जुड़ने मई क्या बुराई है ,वैसे भी बदलाव तोह प्रकृति का नियम है। जुड़ गए ऑरकुट मैं हमने भी लिखा अपने बारे मैं और फ़िर दोस्त बनाये और शुरू हुआ स्क्रेप्पिंग का दौर.सब इधर का माल इधर करते है ,कोई अपने मन से अभियक्त नही करता.लगा कि मौलिकता का जमाना ही ख़तम हो गया. बड़ा बकवास है जी यह तो "कॉपी पेस्ट " कि राजनीती है। हद तोह तब हो गई जब हमने कई प्रोफाइल के अन्दर अपने और साथी ब्लोग्गरों कि लिखी रचनाए देखि। इसलिए भइया हम कहते है ब्लॉग्गिंग बेस्ट है।क्योकि सब यही से निकलता है.टिपण्णी लिखते लिखते दोस्त बन जाते है. अनजान लोगो के मौलिक विचारो को जान लेते है। तो कभी हास्य रस या श्रृंगार वीर आदि रसो का आनद लेते है। तोह फ़िर हम को ऑरकुट कि क्या जरूरत ऑरकुट को हमारी है.